दस आदतें जिसको अपनानें से हम प्रभु के करीब जा सकते हैं।
(1). प्रभु को हर बात में, हर समय धन्यवाद देना।
हम जानते है कि, हमारा जीवन प्रभु का दान है, हमारा शरीर प्रभु का मंदिर है। यशायाह:43:21 में लिखा है, इस प्रजा को मैं ने अपने लिये बनाया है कि वे मेरा गुणानुवाद करें। ओर पौलुस भी 1 कुरिन्थियो:10:31 मे केहता है कि, इसलिये तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिये करो। हमें अपनी हर बात में परमेश्वर को धन्यवाद देना चाहिए। जब प्रभु येशु इस दुनिया में थे, तब येशुने थी हर वक्त परमेश्वर की स्तुति की। (मत्ती:14:19, युहन्ना:11:41, लूका:22:19). हम पढते है, प्रेरितों:16:25 में कि जब पौलुस ओर सिलास जेल में थे तब वे प्रार्थना करते ओर परमेश्वर के भजन गा रहे थे। ओर पौलुस केहता है, हर बात में धन्यवाद करो; क्योंकि तुम्हारे लिये मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्छा है। (1 थिस्सलुनीकियों 5:18). इसलिए हमे अपनी शिकायत को छोड़ कर परमेश्वर को हर बात में, हर वक्त में धन्यवाद देना चाहिए।
(2). हमे बाइबल (प्रभु का वचन) पढते रहेना है।
जब हम वचनों को पढेंगे तब हमें पता चलेगा कि, येशु कोन है, येशु हमसे क्या बात करना चाहते है, हमारे जीवन का महत्व क्या है, आत्मिक जीवन में कैसे बढ शकते है वो सब हम जान पायेंगे। बाइबल पढने से प्रभु हमसे बात करता है, ओर हमको शिखाता है, कि हमें किस राह में चलना है। जैसे हम रोज खाना खाते हैं, वैसे हरदिन बाइबल पढे, क्योंकि वचन, प्रभु की वाणी हमारी जीवन रोटी है। इसलिए हमें बाइबल पढते रहेना है।
(3). प्रभु के वचनो को याद (कंथस्थ, ग्रहण) करना है।
हमें बाइबल तो पढना ही है, पर पढके याद (ग्रहण) भी करना है। एसा ना हो कि, पढा हुआ वचन हम भुल जाए, या शैतान वचनों को हमसे छीन ले। जब हम कोई मुश्किल में होते हैं तो याद किया हुआ वचन हमे राह दीखाता है। या जब हम परमेश्वर के विरुद्ध पाप करते हैं, तो वचन हमे रोशनी दीखाता है। जैसा भजन संहिता में लिखा है, मैं ने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरुद्ध पाप न करूँ। (भजन संहिता 119:11) वचन हमें पाप करने से बचायेगा। हम जानते हैं कि, जब शैतान येशु कि परिक्षा करता है, तब येशु वचनो से शैतान को हराता है। शैतान से लडना हो तो हम परमेश्वर के वचनों से हरा सकते हैं। इसलिए हमे वचन पढके याद करना है।
(4). हम प्रार्थना करनेवाले बने।
कहा जाता है कि, प्रार्थना बंध ताले को भी खोल देता है, सारे बंधन को तोड़ देती है। हम येशु मसिह के जीवन से सीख सकते हैं कि, येशु हर वक्त प्रार्थना करते थे। अपनी सेवकाई से पहले प्रार्थना की, चेलो को चुनने से पहले, अकेले में, अपनी मृत्यु से पहले भी प्रार्थना की। येशु प्रार्थना को बहुत महत्व देता था। चेलोने भी येशु से प्रार्थना सीखाने को कहा। प्रार्थना बिना हमारा जीवन अधुरा है। पौलुस केहता हे की, निरंतर प्रार्थना करते रहो। दानियेल के बारे में लिखा है कि, वो दीन मे तीन बार प्रार्थना करता था। हम भी एक निर्णय ले कि, रोज हम प्रार्थना करेंगे।
(5). हम अपनी गलतियों को स्वीकार करनेवाले बने।
जब हम कोई गलती या पाप करते हैं, तो उसको छिपाने की कोशिश करते हैं, या कोई बहाना बनाते हैं। हम अपनी गलतियों को छिपाकर ना रखे, पर प्रभु के सामने आकर, गलती स्वीकार कर माफी मांगे। 1 यूहन्ना 1:9 में लिखा है, यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है। परमेश्वर हमारी सब गुप्त बातों को जानता है। हम दाविद राजा के बारे में पढते है कि, जब वो बतशेबा के साथ व्यभिचार करता है, ओर नातान नबी उनको समजाते है, तब राजा दाविद अपना गुनाह स्वीकार करता है, छिपाता नहीं है। हम भी अपनी गलतियां को ना छिपाए, पर स्वीकार कर प्रभु से माफी मांगे।
(6). हर समय हमें नम्र रहेना है।
नम्र होने का अर्थ ये है कि, हम अपना स्वार्थ, धमंड, खुद की इच्छा को छोड़कर येशु के जेसे बने, परमेश्वर की इच्छा को जाने। हम अपना स्थान, नाम, धन कमाने के पीछे ना भागें पर परमेश्वर की इच्छा को पूरी करने के लिए दुख भी उठाए। जब हम बाइबल पढते है, तो पता चलता है कि, येशु मसिह स्वर्गीय स्थान छोड़कर इंसान बनकर, नम्र होकर इस संसार में आए। ओर में समजता हु कि इस संसार में नम्र उनके जैसा कोई नहीं। जब येशु को सिपाही द्वारा सजा दी जा रही थी, येशु का मजाक उडाया जा रहा था, फिर भी येशुने कुछ नहीं कहाँ । पौलुस कहता है कि, जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो; (फिलिप्पियों 2:5). इसलिए हमे येशु के जैसा हर समय नम्र बने रहेना हैं।
(7). एक दूसरे की सेवा करना ।
क्योंकि मनुष्य का पुत्र इसलिये नहीं आया कि उसकी सेवा टहल की जाए, पर इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपना प्राण दे।” (मरकुस 10:45) प्रभु येशु सेवा करवाने नहि, परन्तु सेवा करने आया था। सेवा करने का मतलब यह है कि, हम एक दूसरे के दास बने। हम पढते है युहन्ना:13:4-9 में कि, येशुने चेलों के पाँव धोएँ। एक विश्वासी होकर हमें एक दूसरे की सेवा करनी चाहिए। फिर वो किसी भी क्षेत्रों में हो। हो सकता है कि, हमारे पडोस में कोई बिमार हों, तो उनके लिए हम खाना भी बनाकर दे सकतें है। किसीके काममें हम मदद कर सकते हैं। हम गरीबों के बीच, अनाथों के बीच, विधवाओं के बीच सेवा कर सकते हैं। इस तरह हम एक दूसरे की सेवा करते रहे।
(8). हमे स्वयं के लिए मरना है।
हम सबसे ज्यादा अपने बारे में सोचते हैं, खुद को आगे रखने की सोचते हैं, या खुद को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। पौलुस केहता हे, में मसिह के साथ क्रूस पर चडाया गया हुं, अब मे नहि हुं पर मसिह मुझमें जीता है। येशु मसिह केहता हे, कि अगर कोई मेरे पीछे आना चाहता है तो अपने आपको इनकार करें। स्वयं के लिए मरना अर्थात जो हमारी सांसारिक सुखों हे, जो हमें प्रभु से दुर करती हैं, उनको छोडना। हो सकता है हमारा Mobile हमको प्रभु से दुर कर रहा हो, या Tv, दुनिया की दोस्ती, जो भी हो, उन को इनकार करें। अपना क्रूस उठाए। स्वयं के लिए मरना अर्थात प्रतिदिन येशु के पीछे चलना। जो स्वयं के लिए मरता है, वो प्रभु येशु के पीछे प्रतिदिन चलेगा।
(9). हम प्रभु को देनेवाले बने।
आज जो कुछ हमारे पास है, वो सब प्रभु का दिया हुआ दान है, हमारा ये जीवन भी। जो हमें प्रभुने दिया है, उनमेंसे हम प्रभु दे। उससे भी बढकर हम अपना जीवन प्रभु को समर्पण करें। प्रभु को धन नहीं चाहिए, पर हमारा परिवर्तित जीवन चाहिए। क्या हम प्रभु को देने के लिए तैयार है।
(10). हम दूसरों को बढानेवाले बन जाए।
हमारी एक खराब आदत है कि, हम दूसरो गीराने के बारे में सोचते हैं, दुसरो का मजाक बनाते है, दुसरो की गलती को चर्चा करते हैं, निंदा करतें है। एसा ना करके हमे दुसरो को बढमे मददगार होना चाहिए। हम मसिही एसे नहीं है, एक दूसरे को प्यार से समजाना है। हमें किसीकी गलतीयों को बढाकर लोगों के सामने नहीं जाना है। बल्कि हम एक दूसरे को गलती को समजाए, कि प्रभु हमे माफ करेगा। हम एक दूसरे को शांति से समजाए। ओर दुसरो को बढानेवाले बने।
- Amen
- Rejoice in Jesus