बाइबल हम तक कैसे पहुँची (How did the bible reach us).. Hindi Article..

 

How did the bible reach us

बाइबल हम तक कैसे पहुँची

एक बाइबल एक पुस्तकालय के समान है , जिसमें विभिन्न लेखकों की पुस्तकें हैं । “ बाइबल " शब्द यूनानी भाषा के बिबलिया से निकला है , जिसका अर्थ है " पुस्तकें " । इन पुस्तकों के लेखन में 1000 वर्ष से अधिक समय लगा और इसके वर्तमान स्वरूप में आने में सैकड़ों वर्ष और लगे ।

घटनाओं का विवरण एक से दूसरे तक पहुँचना

इससे पहले कि बाइबल में कुछ भी लिखा गया , लोग परमेश्वर से सम्बन्धित घटनाओं को और परमेश्वर के साथ उन लोगों का सम्बन्ध , जिनके विषय में अब हम बाइबल में पढ़ते हैं , से सम्बन्धित घटनाओं को विवरणों के रूप में बताते थे । मौखिक रूप से इन विवरणों का से दूसरे तक पहुँचना " मौखिक परम्परा " कहलाता है । पूर्वजों से सम्बन्धित ये विवरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचते रहे और यह रीति कई वर्षों तक बनी रही । यहूदी पवित्रशास्त्र ( पुराना - नियम ) से सम्बन्धित कुछ घटनाएँ अन्तिम लिखित रूप में आने से पहले कई शताब्दियों तक मौखिक रूप में प्रचलित रही थीं ।

बाइबल की मौखिक परम्परा का लिखित रूप में आना

 जैसे जैसे प्राचीन पश्चिमी एशिया के मानवीय समाजों में लेखन का रूप विकसित हुआ जो सीखने में सरल था ( ई . पू . 1800 के आसपास ) , लोगों ने विवरणों , गीतों ( भजन संहिता ) तथा भविष्यवाणियों को लिखना आरम्भ किया जो बाद में बाइबल का भाग बने । ये पपाइरस , कागज़ के समान एक लेखन सामग्री जो सरकण्डों से बनती थी , या चर्मपत्र , जो पशुओं की सूखी खाल से बनता था , पर लिखें जाते थे। परन्तु पुराना - नियम की सारी पुस्तकें एक ही समय में नहीं लिखी गई थीं । इस प्रक्रिया में शताब्दियाँ लगी । जब कुछ पुस्तकें लिखी या जमा की जा रही थी तो दूसरी पुस्तकें अभी भी मौखिक रूप में ही थीं । चूंकि ये मौखिक विवरण थोड़ा थोड़ा करके लिखे गए , और कभी कभी एक घटना का एक से अधिक विवरण जमा किया गया ।

इसलिये बाइबल के कुछ अंश आज के पाठक के लिये उलझन भरे हो सकते है । उदाहरण के लिये उत्प 1 : 1-24 की उत्प 2 : 5-3 : 24 से , तथा 1 शमू 16 : 14-23 की 1 शमू 17 : 55-58 से तुलना करें । जिन मूल पाण्डुलिपियों से पुराना - नियम और नया - नियम बने , वे अब उपलब्ध नहीं हैं ; और बहुत सम्भव है कि ये निरन्तर प्रयोग के कारण घिसकर नष्ट हो गई या सदियों पूर्व नष्ट कर दी गई हो । परन्तु इनकी प्रतिलिपियाँ हाथ से बनाई गई थी जो सिनेगॉग ( आराधनालयों ) , गिरजाघरों , और मठों की बहुमूल्य सम्पत्ति बन गई । प्रतिलिपियों के खराब होने से पहले इनकी नई प्रतियों बना ली जाती थीं और यह क्रम चलता रहा । पुराने एवं नये नियम की कई प्राचीन प्रतियाँ आज भी यरूशलेम , लन्दन , पेरिस , डबलिन , न्यूयार्क , शिकागो , फिलाडेल्फिया तथा एन आर्बर , मिशिगन आदि स्थानों के संग्रहालयों और पुस्तकालयों में सुरक्षित रखी हुई हैं ।

यहूदी पवित्रशास्त्र का संकलन

संकलन के पूरा होने की निश्चित तिथि को जानना सम्भव नहीं है । पवित्रशास्त्र के कुछ लेखक ई . पू . 1300 के भी हैं , परन्तु पुस्तकों के संकलन की प्रक्रिया ई . पू . 400 से आरम्भ हुई थी । पुस्तकों का संकलन चल ही रहा था , जब कि ई . पू . दूसरी शताब्दी में भी नई पुस्तकों का लिखा जाना जारी था । कौन - कौन सी पुस्तकें आधिकारिक यहूदी पवित्रशास्त्र का हिस्सा होंगी इसकी प्रक्रिया लगभग ई . स . 100 तक चलती रही थी । यह कार्य प्रायः यहूदी रब्बियों ( गुरुओं , शिक्षकों ) द्वारा किया जाता था ।

एक बदलते संसार के लिये बाइबल का तैयार किया जाना

यही वह समय था जब यहूदी पवित्रशास्त्र का अनुवाद यूनानी भाषा में किया गया । इस अनुवाद को “ सेप्टुआजिट " के नाम से जाना जाता है , जिसका अर्थ होता है " सत्तर " , और इसे प्रायः सत्तर की संख्या के लिये प्रयुक्त रोमी संख्या ( LXX ) द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है । " सेप्टुआजिंट " अस्तित्व में कैसे आया और इसका यह नाम कैसे पड़ा , इसके सम्बन्ध में जो परम्परा है उसका वर्णन " एरिस्टोस का पत्र ' नामक दस्तावेज़ में पाया जाता है । इस परम्परा के अनुसार बहत्तर विद्वानों ने इब्रानी में लिखे यहूदी पवित्रशास्त्र का अनुवाद करना आरम्भ किया , सभी ने एक साथ । यह पत्र आगे बताता है कि उन सभी का अनुवाद कार्य भी एक ही साथ समाप्त हुआ , बहत्तर दिनों में , और इन बहत्तर विद्वानों ने पाया कि उन सभी के अनुवाद ठीक एक जैसे थे । इस घटना से सम्बन्धित इन सभी बहत्तर लोगों ने मिलकर इस अनुवाद को यह नाम दिया । सम्पूर्ण रोमी साम्राज्य में बिखरे हुए यहूदी बाइबल के इसी यूनानी अनुवाद का प्रयोग करते थे , क्योंकि इनमें से अधिकांश इब्रानी भाषा के बदले यूनानी भाषा बोलते थे ।

सेप्टुआजिंट की सबसे प्राचीन प्रतिलिपियो ई . पू . दुसरी शताब्दी की है , यीशु के जन्म से सौ वर्ष से भी पहले की । सेप्टुआजिंट ही यहूदी पवित्रशास्त्र का वह अनुवाद था जिसका उपयोग प्रारम्भिक मसीहियों ने किया था । यह पूर्णतः स्पष्ट नहीं है कि इसका फैसला कैसे किया गया कि कौन सी पुस्तक इतनी पवित्र है कि उसे यहूदी पवित्रशास्त्र में जोड़ा जाए । हमें इतना मालूम है कि ई . स . 100 के लगमा यहूदी विद्वानों का एक दल यरूशलेम के पश्चिम में स्थित जामनिया नामक एक यहूदी शिक्षा केन्द्र में एकत्र हुआ था । यही वह समय था जब विद्वानों ने यह फैसला किया था कि कौन सी पुस्तके यहूदी पवित्रशास्त्र का भाग हैं । सम्भवतः उन्हीं विद्वानों ने यह फैसला किया कि उन्तालीस पुस्तकें पवित्र सूची ( केनन ) में सम्मिलित हों , जिसे सम्भवतः सम्पूर्ण यहूदी समाज का फैसला माना गया । सात पुस्तके जिन्हें ड्यूटरोकेनॉनिकल पुस्तकें ( द्वितीय सूची ) कहा जाता है , इस सूची में सम्मिलित नहीं हैं । आज अधिकांश प्रोटेस्टेंट कलीसियाएँ उन्तालीस पुस्तकों की मूल सूची का अनुसरण करती हैं और इन्हें पुराना - नियम कहते हैं । रोमन कैथलिक , ऐग्लिकन ( एपिस्कोपल ) , तथा ईस्टर्न ऑर्थोडॉक्स कलीसियाएँ अपने पुराना - नियम में ड्यूटरोकेनॉनिकल पुस्तकों को भी जोड़ती हैं ।

यीश मसीह और उसके प्रारम्भिक शिष्यों से सम्बन्धित घटनाएँ

यीशु और उसके अधिकांश शिष्य यहूदी थे , इसलिये उन्होंने यहूदी पवित्रशास्त्र का उपयोग किया और उसे उद्धृत भी किया । लगभग ई . स . 30 में यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान की घटनाएँ और उसकी शिक्षाएँ मौखिक रूप से प्रचलित थीं । ई . स . 65 के लगभग इन घटनाओं और शिक्षाओं को पुस्तकों के रूप में लिखा जाने लगा जिन्हें सुसमाचारों के नाम से जाना गया , जो नया नियम का लगभग आधा भाग हैं । पर नया नियम के प्रारम्भिक लेख वे पत्रियाँ हैं जिन्हें प्रेरित पौलुस ने रोमी साम्रज्य में बिखरे हुए यीशु के अनुयायियों को मण्डलियों को लिखा था । इन पत्रियों में पहली सम्भवतः 1 थिस्सलुनीकियों की पत्री थी , जो ई . स . 50 में लिखी गई थी । नया नियम की अन्य पुस्तकें प्रथम शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अथवा द्वितीय शताब्दी के प्रारम्भ में लिखी गई थीं । नया नियम की पुस्तकें यूनानी भाषा में लिखी गई थी , जो कि रोमी साम्राज्य के उस काल की अन्तरराष्ट्रीय भाषा थी । ये पुस्तकें अलग अलग पुस्तकों या पत्रियों के रूप में ले जाई जाती और पढ़ी जाती थी । अगले लगभग तीन सौ वर्षों तक ( ई . स . 100-400 ) आरम्भिक कलीसिया के अगुओं और चर्च सभाओं में इस बात पर बहस होती रही कि नवा - नियम की कौन - कौन सी पुस्तकों को पवित्र माना जाए और उसी आदर के साथ उनका भी उपयोग किया जाए जिस प्रकार से यहूदी पवित्रशास्त्र का उपयोग किया जाता है । ई . स . 367 में , सिकन्दरिया के बिशप , अथनेसियुस ने पत्र लिखा था जिसमें उसने सत्ताइस पुस्तकों की एक सूची दी थी और कहा था कि इन पुस्तकों को मसीही लोगों को आधिकारिक मानना चाहिये । उसकी सूची में वे पुस्तकें सम्मिलित थी जो पहले ही से मसीही कलीसियाओं में प्रचलित थीं , और जिन पुस्तकों की सूची उसने दी थी वे आज के नवा - नियम की सत्ताइस पुस्तकें ही थीं ।

बाइबल का अनुवाद कार्य

जब नया नियम की पुस्तकें लिखी गई थीं उस समय सम्पूर्ण भूमध्य सागरीय संसार में यूनानी भाषा का प्रयोग ही होता था । पर ई . स . द्वितीय शताब्दी के उत्तरार्द्ध में , स्थानीय भाषाएँ पुनः लोकप्रिय होने लगी थीं , विशेषकर स्थानीय कलीसियाओं में । तब बाइबल का अनुवाद लैटिन भाषा , रोम की भाषा ; कॉष्टिक , मिस्र की एक भाषा ; और सीरियक , सीरिया की एक भाषा में किया गया । ई . स . 383 में , पोप देमेसुस प्रथम ने जेरोम नामक एक विद्वान पास्टर को बाइबल का लैटिन भाषा में आधिकारिक अनुवाद तैयार करने का उत्तरदायित्व सौंपा । सम्पूर्ण बाइबल का अनुवाद करने में जेरोम को लगभग सत्ताइस वर्ष लगे । उसका यह अनुवाद वल्गेट के नाम से जाना गया और अगले एक हजार वर्ष तक पश्चिमी यूरोप में यह बाइबल के आधिकारिक अनुवाद के रूप में प्रचलित रहा । मध्य युग तक पहुंचते पहुंचते मात्र विद्वान ही लैटिन भाषा पढ़ और समझ सकते थे । पर जब तक जोहानस गुटेनबर्ग ने आधुनिक प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार किया ( लगभग सन् 1456 में ) , तब तक स्थानीय भाषाएँ सरकारी , शैक्षणिक , और धार्मिक स्थितियों में व्यापक और स्वीकृत होने लगी थी । और जैसे जैसे अधिक से अधिक लोग पढ़ना सीखने लगे वैसे वैसे स्थानीय भाषाओं में बाइबल की मांग बढ़ने लगी । अतः मार्टिन लूथर , विलियम टिंडेल , कैसियोडोरो डी रेनो , एवं गियोवानी दियोदाती जैसे अनुवादक बाइबल का अनुवाद उन भाषाओं में करने लगे जिनका लोग अपने प्रतिदिन के जीवन में प्रयोग करते थे । बाइबल अनुवाद की प्रक्रिया आज भी जारी है , और कुछ नवीन खोजों ने इसमें बड़ी सहायता प्रदान की है । उदाहरणार्थ , पिछले 150 वर्षों में नया नियम की बहुत सी प्राचीन यूनानी पाण्डुलिपियाँ प्राप्त हुई हैं । सन् 1947 में , यहूदी पवित्रशास्त्र ( पुराना - नियम ) की कुछ अति प्राचीन पाण्डुलिपियाँ इस्राएल स्थित मृतक सागर के पश्चिम में पाई जाने वाली कुमरान , मुरब्ब'अत , और अन्य स्थानों की गुफ़ाओं से प्राप्त हुई , जिन्हें मृतक - सागर कुण्डन - पत्रों ( Dead Sea Scrolls ) के नाम से जाना जाता है । ये पाण्डुलिपियाँ , जो ई . पू . तीसरी सदी से ई . स . पहली सदी के मध्य की हैं , कुछ परिच्छेदों को अच्छी तरह समझने और उनका उचित अनुवाद करने तथा यह निर्णय लेने में कि किसी पद या शब्द का सटीक अनुवाद कैसे करें , विद्वानों के लिये बड़ी सहायक सिद्ध हुईं । बाइबल एक अति प्राचीन पुस्तक है जो हमें इस प्रकार प्राप्त हुई क्योंकि बहुत से स्त्री और पुरुषों ने इसकी प्रतियाँ बनाने तथा पाण्डुलिपियों का अध्ययन करने , महत्त्वपूर्ण शिलालेखों और प्राचीन खण्डहरों को ध्यानपूर्वक जाँच करने , और प्राचीन लेखों का आधुनिक भाषाओं में अनुवाद करने में कठोर परिश्रम किया है । उनके समर्पण ने परमेश्वर के लोगों की बातों को जीवित रखने में सहायता की ।

Amen

🙏 Thank You 🙏

- Rejoice in Jesus

 

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